एफएनएन, नैनीतालः उत्तराखंड के नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा कि राज्य में भ्रष्टाचार अब शिष्टाचार बन गया है। जीरो टॉलरेंस का नारा देने वाली धामी सरकार ऊपर से लेकर नीचे तक आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी है। आर्य ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री और हरिद्वार सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने संसद में अवैध खनन का मुद्दा उठाया। जिससे कांग्रेस द्वारा लगाए गए आरोपों की पुष्टि होती है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस निरंतर इस बात को उठाती आ रही है कि उत्तराखंड में जीवनदायिनी नदिया अवैध खनन का शिकार हो रही है और भारी भरकम मशीनों से नदी का सीना चीरा जा रहा है।

“शासन-प्रशासन इन खनन माफियाओं के आगे नतमस्तक क्यों?”
नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा कि बड़ा सवाल यही है की शासन-प्रशासन क्यों इन खनन माफियाओं के आगे नतमस्तक है। जब नदियों में मशीनों से खनन पूरी तरह से प्रतिबंधित है, तो फिर प्रदेश में पोकलैंड मशीनों से यह अवैध खनन कैसे चल रहा है? कौन इनको संरक्षण दे रहा है। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि बागेश्वर जिले के कांडा क्षेत्र में अवैध खड़िया खनन के मामले में उत्तराखंड हाईकोर्ट का हस्तक्षेप इस बात को उजागर करता है कि सरकार और प्रशासन किस हद तक भ्रष्टाचार और लापरवाही में डूबे हुए हैं। पर्यावरणीय क्षति, घरों में आई दरारों और प्रभावित ग्रामीणों की पीड़ा के बावजूद सरकार ने आंखें मूंदे रखीं।

“सरकार ने अवैध खनन पर लगाम लगाने का कार्य व शक्तियां निजी हाथों में सौंपी”
आर्य ने कहा कि उत्तराखंड में सरकार ने रिवर बेड माइनिंग (नदी के तल में खनन) करने वालों से रॉयल्टी और दूसरे टैक्स वसूलने और अवैध खनन पर लगाम लगाने का कार्य और शक्तियां निजी हाथों में सौंप दी हैं। खनन रॉयल्टी संग्रह के लिए हैदराबाद की निजी कंपनी पावर मेक प्रोजेक्ट्स लिमिटेड को आउटसोर्स किया गया है। ये कंपनी ने चार बड़े जिलों – नैनीताल, हरिद्वार, उधम सिंह नगर और देहरादून में पांच सालों तक रॉयल्टी इकट्ठा करेगी। कंपनी राज्य को इस काम के बदले 303.52 करोड़ रुपए देगी। बाकी लाभ का सारा पैसा कंपनी के खाते में जायेगा।

“उत्तराखंड में अवैध खनन जुर्माना की 1386 करोड़ की वसूली सरकार नहीं कर पाई”
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया कि उत्तराखंड में अवैध खनन जुर्माना की 1386 करोड़ की वसूली सरकार नहीं कर पाई। इस रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि सरकारी एजेंसियों ने ही अवैध खनन कराया है तथा खनन विभाग, जिला कलेक्टर, पुलिस विभाग, वन विभाग, जैसी संस्थाएं अवैध खनन को रोकने और उसका पता लगाने में विफल रही हैं।

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