इलाहाबाद हाई कोर्ट का आदेश: 1982 के हत्याकांड में 41 साल बाद पूर्व सैनिक को बरी किया गया। 1983 में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी, लेकिन अब कोर्ट ने उसे बरी कर दिया है।

प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 1982 के बदायूं हत्याकांड में पूर्व सैनिक को 41 साल बाद बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि गवाहों के बयानों में विरोधाभास के चलते 1983 में सुनाई गई उम्रकैद की सजा को रद्द किया जाता है। अपीलकर्ता पहले से जमानत पर था, इसलिए उसे सरेंडर करने की जरूरत नहीं है। जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र की खंडपीठ ने निचली अदालत के फैसले को पलटा।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 41 साल बाद एक पूर्व सैनिक को बरी कर दिया। 1982 के बदायूं हत्याकांड में उसे 1983 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। हाई कोर्ट ने गवाहों के बयानों में विरोधाभास का हवाला देते हुए सत्र न्यायाधीश के फैसले को खारिज कर दिया। जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की खंडपीठ ने मुरारी लाल की याचिका को स्वीकार करते हुए उसे बरी कर दिया।

बयानों में विरोधाभास 41 साल बाद पूर्व सैनिक को बरी

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 41 साल पुराने हत्याकांड में पूर्व सैनिक को बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि गवाहों के बयानों में स्पष्ट विरोधाभास हैं और दूसरे गवाह की गवाही अविश्वसनीय है। 1982 में फूल सिंह की हत्या के बाद उसके भाई श्योदान ने मुरारी लाल पर हत्या का आरोप लगाया था। मुरारी लाल को सेशन कोर्ट ने उम्रकैद की सजा दी थी, लेकिन हाई कोर्ट ने कहा कि सबूत संदेह से परे साबित नहीं हुए, इसलिए सजा को रद्द कर दिया।

बदायूं में 1982 में हुई थी हत्या की घटना

बदायूं में 6 जुलाई 1982 को फूल सिंह की हत्या हो गई थी। फूल सिंह अपने गांव लौट रहे थे जब उनकी हत्या कर दी गई। उनके भाई शिवदान सिंह ने आरोप लगाया कि मुरारी लाल ने पुरानी दुश्मनी के चलते उनकी हत्या की। सेशन कोर्ट ने मुरारी लाल को दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई। अब, आरोपी जमानत पर है।

हाई कोर्ट ने दी बड़ी राहत

हाई कोर्ट ने केस में बरी करने का आदेश देते हुए कहा कि साइट प्लान में दोष है और यह स्पष्ट नहीं कि फूलसिंह की हत्या गांव आते समय हुई या जाते समय। एकमात्र चश्मदीद गवाह की गवाही विश्वसनीय नहीं है, क्योंकि उसके बयान का समर्थन कोई और गवाह नहीं करता। पंचायतनामा पर हस्ताक्षर करने वाले ने इनकार कर दिया कि उसने हस्ताक्षर किए हैं। इसके अलावा, कुछ गवाहों ने बताया कि लाश थाने ले जाई गई, जबकि दूसरों ने कहा कि लाश थाने नहीं गई।

हाई कोर्ट ने अभियोजन पक्ष की कई कमियों को देखते हुए हत्या के आरोप को संदेहास्पद मानते हुए अभियुक्त की सजा रद्द कर दी। कोर्ट ने कहा कि चूंकि अभियुक्त पहले से जमानत पर है, उसे अब समर्पण करने की जरूरत नहीं है। मामले में आगे की कार्रवाई नियमानुसार की जाएगी।

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