नई दिल्ली: वक्फ (संशोधन) कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई में केंद्र सरकार और याचिकाकर्ताओं के बीच जोरदार बहस हुई। चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस पी. एस. नरसिंह की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है।
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी दलील में कहा:
“यदि कोई ज़मीन सरकारी है तो सिर्फ उसे वक्फ घोषित कर देने से सरकार का अधिकार खत्म नहीं होता।”
उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा,
“जैसे मैं आदिवासियों की ज़मीन नहीं खरीद सकता, वैसे ही कोई वक्फ बनाकर ज़बरदस्ती हक नहीं जता सकता। अगर कोई मुतवल्ली मनमानी करता है, तो अदालत उसे रद्द कर सकती है।”
“वक्फ अल्लाह का होता है, वापस पाना मुश्किल” – SG मेहता
SG ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि जब तक अंतिम फैसला नहीं आता, तब तक किसी तरह की अंतरिम राहत न दी जाए।
“अगर वक्फ को संपत्ति सौंप दी गई तो उसे दोबारा लेना कठिन हो जाएगा, क्योंकि वक्फ को ‘अल्लाह की संपत्ति’ माना जाता है।”
दान और वक्फ दो अलग चीजें हैं
मेहता ने बताया कि वक्फ और वक्फ को दान देने की प्रक्रिया अलग-अलग है।
“कोई भी व्यक्ति—even हिंदू—दान दे सकता है। लेकिन वक्फ बनाने के लिए जरूरी है कि व्यक्ति मुस्लिम हो और पांच साल से इस्लामी आचरण में हो। इससे वक्फ प्रणाली के दुरुपयोग से बचाव होता है।”
राजस्थान सरकार भी SG के साथ
राजस्थान सरकार की ओर से वकील राकेश द्विवेदी ने कहा:
“’वक्फ बाय यूजर’ इस्लाम का मूल सिद्धांत नहीं है, यह परंपरा केवल भारतीय उपमहाद्वीप में ही मिलती है। अयोध्या फैसले में भी इस पर तीन बार स्पष्ट राय दी गई है।”
2013 में हुआ था कानून में बड़ा बदलाव
SG मेहता ने बताया कि 1923 से लेकर 2013 तक केवल मुसलमान ही वक्फ बना सकते थे। लेकिन 2013 में संशोधन करके “कोई भी व्यक्ति” जोड़ दिया गया। अब नए कानून में इसे हटाने की तैयारी है।
उन्होंने यह भी कहा:
“अगर कोई हिंदू व्यक्ति सार्वजनिक उपयोग के लिए मस्जिद बनाना चाहता है, तो वह वक्फ न बनाकर पब्लिक ट्रस्ट के तहत भी बना सकता है—जैसा कि बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट अधिनियम में प्रावधान है।”
जनजातीय इलाकों से भी आईं शिकायतें
SG ने बताया कि कई जनजातीय क्षेत्रों से शिकायतें मिली हैं कि वक्फ के नाम पर ज़मीन पर कब्जा किया जा रहा है।
“अगर कोई व्यक्ति वक्फ के अधिकार चाहता है तो पहले यह साबित करना होगा कि वह मुस्लिम है। जैसे पर्सनल लॉ में होता है।”
यह बहस सैद्धांतिक नहीं, जमीन से जुड़ी है
SG मेहता ने कोर्ट को बताया कि यह सिर्फ कानूनी बहस नहीं, बल्कि ज़मीनी हकीकत है।
“यह मुद्दा व्यावहारिक है, न कि सिर्फ किताबों में पढ़ने लायक। लोगों के भूमि अधिकार इससे सीधे जुड़े हैं।”
SG ने कहा- सबके साथ समान व्यवहार हो
सुनवाई के अंत में मेहता ने स्पष्ट किया कि वे 1995 के वक्फ अधिनियम को चुनौती नहीं दे रहे।
“अगर किसी याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट भेजा जा रहा है तो सभी को भेजा जाए। किसी के साथ भेदभाव न हो।”
सुनवाई जारी, सबकी नजरें सुप्रीम कोर्ट पर
इस मामले में AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी सहित अन्य याचिकाकर्ताओं की तरफ से कपिल सिब्बल दलीलें रख रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की यह सुनवाई आगे और गहराने की संभावना है।