भारत में जम्मू और कश्मीर (Jammu and Kashmir) की विशेष स्थिति, विशेषकर आर्टिकल 370 (Article 370), भारतीय राजनीति का एक अत्यंत संवेदनशील और ऐतिहासिक विषय रहा है। यह आर्टिकल जम्मू और कश्मीर को विशेष स्वायत्तता प्रदान करता था। हालांकि, 5 अगस्त 2019 को जब भारतीय सरकार ने जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करने की घोषणा की थी, तो इस फैसले ने पूरे देश में एक नए राजनीतिक परिप्रेक्ष्य की शुरुआत की थी।
उस समय, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में भारत सरकार ने जम्मू और कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश में बदलने के लिए एक बड़ा कदम उठाया था। इसके बाद, अब एक नई परिस्थिति उत्पन्न हो रही है, जिसमें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का क्या कदम हो सकता है, इस पर भी राजनीतिक विश्लेषक चर्चा कर रहे हैं।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का संदर्भ
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के पद संभालने के बाद भारतीय राजनीति में एक नया मोड़ आ सकता है। उन्होंने 25 जुलाई 2022 को भारतीय राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी, और उनके आगमन के साथ ही भारतीय राजनीति में कई नई संभावनाएँ उत्पन्न हो रही हैं। उनका राष्ट्रपति पद संभालने के बाद, विशेषकर कश्मीर और आर्टिकल 370 जैसे संवेदनशील मुद्दों पर उनके कार्य और निर्णय महत्वपूर्ण हो सकते हैं।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भारतीय राजनीति में अपने विशेष स्थान और अपने दृष्टिकोण के लिए जानी जाती हैं। हालांकि उनकी राजनीति की शैली पर अक्सर विचार विमर्श होता रहा है, लेकिन उन्हें भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बनने का गौरव प्राप्त हुआ है। ऐसे में, उनके नेतृत्व में जम्मू और कश्मीर को लेकर कोई नई दिशा या नीति बनने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है।
आर्टिकल 370 का इतिहास
आर्टिकल 370 संविधान का एक हिस्सा था, जिसे 1949 में भारतीय संविधान में शामिल किया गया था। इसका उद्देश्य जम्मू और कश्मीर को एक विशेष दर्जा देना था, ताकि राज्य की स्वायत्तता सुनिश्चित की जा सके। इसके तहत राज्य का अपना संविधान, अपना झंडा और अन्य विशेष अधिकार थे। यह अनुच्छेद भारतीय संविधान में एक अस्थायी प्रावधान के रूप में था, जो राज्य के विशेष मामलों को परिभाषित करता था।
आर्टिकल 370 का वास्तविक प्रभाव 5 अगस्त 2019 को तब देखा गया, जब भारतीय सरकार ने इसे प्रभावी रूप से समाप्त कर दिया। जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर दिया गया, और इसे केंद्र शासित प्रदेश में बदल दिया गया। इस कदम ने न केवल राज्य की राजनीति को बदल दिया, बल्कि पूरे देश में आंतरिक और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवाद उत्पन्न कर दिया। भारत सरकार का कहना था कि यह निर्णय जम्मू और कश्मीर के विकास के लिए लिया गया है और यह राज्य को मुख्यधारा में लाने का एक तरीका है।
द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद के प्रभाव
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के आगमन के बाद, भारतीय राजनीति में कई नई चर्चाएँ उभर सकती हैं। विशेष रूप से, जब बात जम्मू और कश्मीर की होती है, तो उनके निर्णय अत्यंत महत्वपूर्ण हो सकते हैं। हालांकि राष्ट्रपति का पद संवैधानिक होता है और उन्हें भारतीय सरकार के निर्णयों को लागू करने की जिम्मेदारी होती है, फिर भी उनके दृष्टिकोण और कार्यशैली से कई मुद्दों पर नई दिशा मिल सकती है।
- संवैधानिक भूमिका: द्रौपदी मुर्मू के पास भारत के संवैधानिक प्रमुख के रूप में कार्य करने की जिम्मेदारी है। जम्मू और कश्मीर के मामले में उनका कोई प्रत्यक्ष निर्णय नहीं हो सकता, लेकिन वे अपने संवैधानिक कर्तव्यों के तहत राज्यपालों के साथ मिलकर कानून व्यवस्था और नीति निर्धारण में अहम भूमिका निभा सकती हैं।
- सामाजिक और आदिवासी समुदाय का समर्थन: द्रौपदी मुर्मू एक आदिवासी महिला हैं, और उनकी पहचान आदिवासी समुदाय के लिए संघर्ष करने वाली नेता के रूप में रही है। वे कश्मीर के आदिवासी क्षेत्रों के मुद्दों को प्राथमिकता दे सकती हैं। उनके विचार में, जम्मू और कश्मीर के आदिवासी समुदायों के अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए कुछ नई नीति की आवश्यकता हो सकती है।
- शांति और विकास के प्रयास: द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद, उनके नेतृत्व में जम्मू और कश्मीर में शांति और विकास को बढ़ावा देने के लिए एक नई पहल हो सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार पहले ही जम्मू और कश्मीर में इंफ्रास्ट्रक्चर और विकास कार्यों के माध्यम से बदलाव ला रही है। ऐसे में द्रौपदी मुर्मू अपने पद का उपयोग कर इस बदलाव को और तेजी से लागू करने में मदद कर सकती हैं।
- कश्मीरियों के विश्वास को पुनः स्थापित करना: 5 अगस्त 2019 के बाद से जम्मू और कश्मीर में कई बदलाव हुए हैं, और वहां की राजनीतिक स्थिति में बदलाव के साथ ही वहां के नागरिकों का विश्वास भी प्रभावित हुआ है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू कश्मीर के लोगों के विश्वास को पुनः स्थापित करने के लिए कई कदम उठा सकती हैं, जैसे कि उनके लिए विशेष योजनाओं की शुरुआत, उनके अधिकारों की सुरक्षा, और उन्हें समग्र विकास में शामिल करने के प्रयास।
पीएम मोदी और द्रौपदी मुर्मू की साझा रणनीति
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने हमेशा से जम्मू और कश्मीर में आर्टिकल 370 को हटाने के फैसले को सही ठहराया है। उन्होंने इसे देश की एकता और अखंडता के लिए आवश्यक कदम बताया है। पीएम मोदी ने इसे कश्मीर के विकास और आम नागरिकों के लिए एक सकारात्मक कदम के रूप में प्रस्तुत किया।
द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद, यह देखा जाएगा कि वे इस मुद्दे पर किस प्रकार का कदम उठाती हैं। हालांकि, राष्ट्रपति की भूमिका में रहते हुए उनका निर्णय सरकार के निर्णयों का पालन करना होता है, लेकिन यह उम्मीद की जाती है कि वे कश्मीर के विकास में मोदी सरकार की नीतियों को आगे बढ़ाने में सहयोग करेंगी।
उनके नेतृत्व में, कश्मीर के लिए दीर्घकालिक शांति और समृद्धि लाने के प्रयासों को और बल मिल सकता है। पीएम मोदी और द्रौपदी मुर्मू की साझा रणनीति से जम्मू और कश्मीर में विकास के नए आयाम खुल सकते हैं।
कश्मीर में समग्र विकास की दिशा
आर्टिकल 370 को हटाने के बाद, जम्मू और कश्मीर में विकास के कई नए रास्ते खुले हैं। कई इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं, उद्योगों का विकास, और नए रोजगार के अवसरों का सृजन हो रहा है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू इस विकास प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभा सकती हैं। साथ ही, कश्मीर में स्थानीय स्तर पर कानून व्यवस्था, सुरक्षा, और सामाजिक कल्याण के कार्यक्रमों में भी सुधार हो सकता है।