महाराष्ट्र के अहमदनगर ज़िले के अकोले तालुका स्थित जांभले गांव में एक आदिवासी महिला को सड़क न होने की कीमत जंगल में बच्चे को जन्म देकर चुकानी पड़ी। यह घटना 29 मई की है, जिसने फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या सच में विकास गांवों तक पहुंच पाया है?

जब प्रसव पीड़ा शुरू हुई, अस्पताल जाना सपना बन गया

प्रतीक्षा माधे नाम की गर्भवती महिला को अचानक तेज प्रसव पीड़ा हुई। घबराए पति दशरथ माधे मदद के लिए ग्राम प्रधान राजेंद्र गावंडे के पास दौड़े। गावंडे ने तुरंत अपनी कार निकाली, लेकिन बारिश की वजह से रास्ता कीचड़ से लथपथ हो चुका था। बीच जंगल में कार फंस गई और अस्पताल पहुंचने की उम्मीद टूट गई।

डॉक्टर नहीं, दवाएं नहीं – जंगल में हुई सुरक्षित डिलीवरी

इसी दौरान प्रतीक्षा की पीड़ा बढ़ गई और प्रसव शुरू हो गया। हालात बेहद कठिन थे – न कोई डॉक्टर, न नर्स, न प्राथमिक मेडिकल किट। लेकिन गांव की महिलाओं ने हिम्मत दिखाई। प्रतीक्षा की सास, मां और गांव की एक महिला ने जंगल में ही उसका प्रसव कराया। बिना किसी औजार के, सिर्फ अनुभव और साहस के बल पर यह कामयाबी हासिल हुई।

गांववालों ने मिलकर बचाई जान

प्रसव के बाद ग्राम प्रधान गावंडे ने स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. सोनावणे से संपर्क किया और एम्बुलेंस मंगवाई। गांववालों ने कीचड़ में फंसी कार को बाहर निकाला और किसी तरह मां-बच्चे को अस्पताल तक पहुंचाया गया। डॉक्टरों ने बताया कि दोनों की स्थिति अब स्थिर और सुरक्षित है।

अधूरी सड़क का भारी खामियाजा

यह कोई पहली घटना नहीं है। जांभले गांव के ठाकरवाड़ी इलाके की सड़क परियोजना 2015 में शुरू हुई थी, लेकिन बजट और वन विभाग की अड़चनों के चलते यह आज तक पूरी नहीं हो सकी। बरसात में यह इलाका बिल्कुल कट जाता है, और ग्रामीणों को ज़िंदगी-मौत के संघर्ष से गुजरना पड़ता है।

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